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भूख

कड़वा सच ......
कड़वा सच ......
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कुदरत के झंझावात सहे,
सृष्टी के जज्वात सहे,
वो चंद चीर में ठिठुर रहा,
किस- किस को हम यह बात कहे.
सुनने वाला चिर निंद्रा विलीन,
सूरा-सुंदरी में वो लीन,
वो आहात होकर तड़प रहा,
हम वस्त्र रहे हैं उसके छीन.
आँखों में आश का पुंज लिए,
उर में अनौखी छह लिए,
फिर रहा वेचारा मरू-मरू,
अधरों पर अपनी प्यास लिए.
अब स्रोत्र सभी उनके सूखे,
नित सोते वेचारे भूखे,
जो सिर्फ दया के आभारी,
घूम रहे तृष्णा और तिरस्कार लिए.
सोचो! ये जीना भी क्या जीना है?
निर्धन की भूख से टकराकर,
बज उठे तुरंत करुना के तार.
कुदरत के झंझावात सहे,
सृष्टी के जज्वात सहे,
वो चंद चीर में ठिठुर रहा,
किस- किस को हम यह बात कहे.
सुनने वाला चिर निंद्रा विलीन,
सूरा-सुंदरी में वो लीन,
वो आहात होकर तड़प रहा,
हम वस्त्र रहे हैं उसके छीन.
आँखों में आश का पुंज लिए,
उर में अनौखी छह लिए,
फिर रहा वेचारा मरू-मरू,
अधरों पर अपनी प्यास लिए.
अब स्रोत्र सभी उनके सूखे,
नित सोते वेचारे भूखे,
जो सिर्फ दया के आभारी,
घूम रहे तृष्णा और तिरस्कार लिए.
सोचो! ये जीना भी क्या जीना है?
निर्धन की भूख से टकराकर,
बज उठे तुरंत करुना के तार.

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