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मैं लिखूं गीत तो तुम गीतों को सुर देना /
जब थक जाऊं तो साथ मुझे प्रचुर देना/*
*/जो आशाओं का स्वप्न संजोया आँखों में,
मत तोड़ो पुष्प छिपा है भंवरा पाँखों में,
जीवन है जटिल, जीने का कोई गुर देना /
मैं लिखूं गीत तो तुम गीतों को सुर देना /
जब थक जाऊं तो साथ मुझे प्रचुर देना/*
*/पल्लव पावस की हरेक बूंद से लड़ता है,
पतझड़ आते ही पात धरा पर गिरता है,
पतझड़ से भी लड़ जाऊं मंत्र मधुर देना /
मैं लिखूं गीत तो तुम गीतों को सुर देना /
जब थक जाऊं तो साथ मुझे प्रचुर देना/*
*/त्याग- तपस्या- प्रेम भाव को कंठ लगा,
कटुता न आये पास उसे तूं दूर भगा,
पाणि- वाणी को ओज दास को वर देना /
मैं लिखूं गीत तो तुम गीतों को सुर देना /
जब थक जाऊं तो साथ मुझे प्रचुर देना/*
*/“अंकुर” छोटा सा जीव सही पर ज्वाला है,
शब्दों के साथ रहा, शब्दों ने पाला है,
कविता को जान, चिंतन को ज्ञान प्रखर देना /
मैं लिखूं गीत तो तुम गीतों को सुर देना /
जब थक जाऊं तो साथ मुझे प्रचुर देना/*
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