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“देह बेचकर पेट पालती बलायें”

कड़वा सच ......
कड़वा सच ......
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लव का चक्कर बड़ा भयंकर, कोई भी बच न पाये /

जो भी आये पास तो भैया, इसमें धसता ही जाये/*

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ला-इलाज ये रोग है प्यारे, न इसकी है परिभाषा /

धन हरता और हरे विवेक ये, हरता मन की अभिलाषा/*

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मर्यादाएं रख बस्ते में युवजन लव-लव चिल्लाये /

लव का चक्कर बड़ा भयंकर, कोई भी बच न पाये /

जो भी आये पास तो भैया, इसमें धसता ही जाये/*

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मर्यादाएं भंग हो रही, तंग हो रही चोलियाँ /

सबसे सस्ती देह हो गई, लगने लगी हैं बोलियाँ/*

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पश्चिम की इस चकाचौंध में, मानवता मर-मर जाये /

लव का चक्कर बड़ा भयंकर, कोई भी बच न पाये /

जो भी आये पास तो भैया, इसमें धसता ही जाये/*

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शहरों के कोतुहल में अब, बंद ज्ञान की शालायें /

फैशन के दलदली दौर में, देह बेचकर पेट पालती बालायें/*

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खा-खाकर इस दौर के धक्के, मन क्रोध से भर जाये /

लव का चक्कर बड़ा भयंकर, कोई भी बच न पाये /

जो भी आये पास तो भैया, इसमें धसता ही जाये/*

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प्रेम शब्द लव से अतिसुन्दर, संस्कृति को प्यारा है /

पाश्चात्य के कुप्रभाव से, अब ये लव से हरा है/*

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देख दशा युवजन समाज की, दृग “अंकुर” के भर आये /

लव का चक्कर बड़ा भयंकर, कोई भी बच न पाये /

जो भी आये पास तो भैया, इसमें धसता ही जाये/*

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