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हो रहा भूचाल सा कैसा अनौखा नृत्य,
धरती कांपती है और अम्बर रो रहा है /
धधकती ज्वाला उरों में जल रही है,
मचलती है टीस की बारूद फटने को हवा में /
किन्तु सागर सो रहा है /
पूर्व आने के कोई तूफान रुक जाती हवाएं,
मौन सन्नाटा समेटे हो भुजाओं में दिशाएं /
चीख सुनने को मिलेगी !
इसलिए तुमको चुनौती दे रहा है,
वक़्त का साम्राज्य अपना सर उठाये /
आग को रोको नहीं तो-
जो उठा तूफान दुनियां को मिटा देगा /
आदमी से आदमी को तोडना,
हाथ अपने से चिता अपनी बनाते जा रहे हो /
खोद लो तुम कब्र अपनी, और उसमे बैठ जाओ /
क्यूंकि फिर नहीं तुमको कोई कन्धा मिलेगा /
भाइयों को क़त्ल करदो, फूंक दो इंसानियत को /
बहिन- बेटी – माँ कोई बाकी न बच पाए हवस से,
तुम चबा मासूम बच्चों को मिटा लो भूख अपनी /
सत्य को तुम झूठ की ऊँची पहाड़ी से गिरा दो /
प्रेम को फाँसी अमन को तुम सुपुर्दे खाक कर दो /
फिर नहीं तुमको कभी इससे बड़ा धंधा मिलेगा /
मंदिरों और मस्जिदों में तुम बना लो मोर्चे /
और उस भगवन को साखी बनाकर,
हाथ में संगीन लेकर कसम खाओ /
अब नहीं हम पनपने देंगे अमन को,
और हम महरूम कर देंगे बहारों से चमन को /
लूट लो खुशियाँ ज़माने की,
और तुम मत दूसरों को, चैन से जीने कभी दो /
यह तुम्हारा “धर्म” है ?
जो त्याग-सयता-स्नेह से कितना कलंकित हो गया है /
साफ़ करलो बह रहा है खून, पानी की तरह इंसानियत का /
पेड़ पर फल आ रहे है –
यह तुम्हारे धर्म के विपरीत हैं,
लाओ कुल्हाड़ा काट लो तरु को, न ले पाये छाया कोई भी ,
बह रहा है नीर क्यौं, क्यों चांदनी बरसी धरा पर ?
सूर्य क्यौं आता ज़माने पर छिड़कने को उजाला ?
धर्म का अनुरोध मानो-
देखना कायर न बन जाए तुम्हारी वीरता /
वृद्ध – बालक देखकर मुट्ठी न हिल जाये तुम्हारी /
या सलज्जा बालिका की देह विक्षत,
धर्म का इतिहास पावन मौन दुनियां से न कह दे /
भूत से हमको नहीं कोई शिकायत /
अब नहीं चिंता हमें आगत समय की,
धर्म की तलवार जो लटकी हमारे शीश ऊपर ,
मैं उसी से दर रहा हूँ /
लेखिनी भी कांपती है शब्द को मुंह से उगलते,
भर गया आतंक चारों ओर कैसी वेदना है /
हाथ में बारूद लेकर और कर बिस्फोट उसका,
तू स्वयं अपने अनागत को विगत क्यों कर रहा है ?
क्या निरीहों पर तुम्हारी वीरता विजयी बनेगी ?
हो गई सिन्दूर से सूनी सदा को मांग,
माताएं निपूती हो गई है /
राखियाँ लेकर के बहने अब प्रतीक्षा क्यों करेंगी ?
वे तुम्हें इतिहास का केवल कलंकित दाग कह कर , मौन हो सिसकी भरेंगी /
जाओ, जाकर तुम निहारों मौन करुनामय उरों को,
आँख, आँखों से मिलाओ रो उठेगी क्रूरता भी /
केखकर उनकी उदासी तिल्मिलाएगी पिपासा,
बन गई जो रक्त प्यासी /
कांप जाये उर तुम्हारा झांक लो और देख लो /
बैठ कर वह वीरता क्यों रो रही है /
वह तुम्हारा दर्प क्यों आंसू बना है, बह रहा है ?
क्यों पकड़कर बाल दोनों हाथ से सर को हिलाते /
तुम कभी इतिहास से बातें करो उसको टटोलो /
खोल देगा वह kaling के लाल पन्ने /
तोड़ दी तलवार वह सम्राट भी तुमको मिलेगा /
और वह पागल मिलेगा, छोड़कर जो राजधानी,
पुत्र-पत्नी को पिता को बन गया भिक्षुक /
है अमिट इतिहास में उसकी कहानी /
फैक दो एसा खिलौना हाथ जो अपने जला दे /
छोड़ दो वह धर्म जो इंसानियत का खून करदे /
और आ जाओ फकीरों में गिरों को तुम उठाओ /
मर रहे है भूख से जो लोग,
उन्हीं में सब लुटा दो /
खोल दो अपना खज़ाना प्रेम का /
जो ह्रदय में सुप्त होकर मर रहा है/*
*/यह फकीरी धर्म लायेगा धरा पर स्वर्ग सुन्दर /
देश भारत है यहाँ पूजा फकीरों की हुई है /
हो रही है और होगी /
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