विचारों के आदान प्रदान की पाठशाला है जागरण जंक्शन (फीडबैक)
कड़वा सच ......
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बहुत दिनों से सोच रहा था कि जागरण जंक्सन का आभार व्यक्त किया जाये. परन्तु क्या बताऊँ कवि हूँ इसलिए असमंजस कि स्तिथि में था कि आभार गद्य में व्यक्त करू या काव्य में. लेकिन आज मैंने निर्णय ले लिए है कि मैं गद्य में जागरण जंक्सन का आभार व्यक्त करूँगा. दौलत कमाने की हौड़ ने आज मानव को इतना व्यस्त कर दिया है कि वह समाज तो क्या अपने परिवार को भी सद्ज्ञान देना नहीं चाहता. और समाज भी सद्ज्ञान लेना नहीं चाहता. समाज में फूहड़ता वाला मनोरंजन पसंद करने वालों का प्रतिशत ज्यादा है. यहाँ मैं आपको हास्य कविसम्मेलनों की ओर इंगित कराना चाहता हूँ. जहाँ फूहड़ हास्य कविताओं को सुनकर श्रोता आनंदित होते है. येसे में यदि कोई कवि साहित्यिक रचना प्रस्तुत करने लगे तो श्रोता उठकर भागने लगते है. जिस से उस कवि का मनोबल गिर जाता है. मंच पर विराजमान अन्य कवि जिन्होंने हास्य रचनाओं का पाठ किया है वे स्वयं को मंच का विजेता मान बैठते है. आयोजक भी हास्य कविओं को अधिक वजन का व साहित्यिक कवि को कम वजन का लिफाफा थमा कर विदा कर देते है. आज हर तरफ फूहड़ मनोरंजन का बोलबाला है. ऐसे में दार्शनिक और चिंतनशील कविओं व लेखकों को बहुत ही कम मंच अपनी सोच, विचार व दर्शन को व्यक्त करने के लिए मिल पाते है. समाज में जब सटीक और उपयुक्त माध्यम से विचारकों की बात पहुँचती है तो बदलाव आता है. आज टेक्नोलोजी का युग है. कंप्यूटर और इंटरनेट हमारे बीच मौजूद है. इसके व-बजूद भी लोग इंटरनेट से सही ज्ञान लेना नहीं चाहते. ज्यादातर लोग ऑरकुट व फेसबुक पर घंटों बैठकर अपना कीमती समय बर्बाद कर रहे है. इंटरनेट जादू का पिटारा है इस पर हर प्रकार की सूचनाएं उपलब्ध है. किन्तु ये जरुरी तो नहीं कि हम यूँ ही अपना सारा समय चेटिंग और अश्लील वेब साइटों की सर्फिंग करते हुए व्यर्थ गवां दे. इससे सद्ज्ञान भी तो प्राप्त किया जा सकता है. इस प्रकार के कार्यों में युवा वर्ग जो कि हमारे देश कि रीड की हड्डी है सबसे ज्याद लिप्त है. मैं ये नहीं कहता कि इंटरनेट गलत है. गलत वे लोग है जो इसका गलत तरीकों के लिए उपयोग करते है. जब मुझे जागरण जंक्सन कि जानकारी नहीं थी तब मैं भी ऑरकुट व फेसबुक पर अपना अमूल्य समय व्यर्थ में गुजरा करता था. परन्तु जैसे ही मुझे पता चला कि इंटरनेट पर दैनिक जागरण समाचार पत्र समूह ने रचनाकारों को एक दुसरे से अपने विचार साझा करने लिए जागरण जंक्सन नाम की वेब साईट बनाई है तो मेने भी इस पर अपना पंजीयन कराकर अपना ब्लॉग बना लिया. पहले जब मैं लोगों से कहता था कि मैंने कविता लिखी है जरा सुन लीजिये तो लोग बहाना बनाकर मुझसे किनारा कर लेते थे. ये वे लोग थे जो कविता के मर्म को समझते ही नहीं थे और मैं उनसे आस लगाता था. लेकिन आज जागरण जंक्सन के साथ जुड़ते ही मुझे एक ऐसा परिवार मिल गया है जिसमे साहित्य जगत के एक से बढकर एक धुरंधर मौजूद है. इन धुरंधरों के वीच निरंतर रहकर कोई भी नवोदित रचनाकार अपनी लेखिनी को मजबूत कर सकता है. सही मंच न मिल पाने के कारण विगत कुछ वर्षों से मेरी लेखिनी भी मूर्छित पड़ी थी. किन्तु जे.जे. पर आते ही मेरी लेखिनी में पुनः प्राणों का संचार हो गया है. जब मैं जवाहर नवोदय विद्यालय बरुआ सागर झाँसी में कक्षा ८ का विद्यार्थी था तब मेरे अन्दर कविता लेखन कि रूचि ने जन्म लिया. वहां सम्मानित शिक्षकों के मार्गदर्शन से निरंतर मेरी लेखिनी में सुधार होता गया. जब हाई स्कूल पास करने के बाद मेरा स्थानांतरण जवाहर नवोदय विद्यालय मडियाहू जिला जौनपुर में हुआ तब तक मैं कुछ हद तक ठीक ठाक लेखन करने लगा था. ये विद्यालय मेरे लिए एक ऐसा वरदान था जहाँ हिंदी शिक्षक के रूप में साक्षात सरस्वती पुत्र परम आदरणीय रमेश पाल सिंह जी मुझे मिले. जो स्वय एक अच्छे कवी व आलोचक थे. इनके सानिध्य में रहकर मेरी लेखिनी में चमत्कारिक निखार आया. और ५ जनवरी १९९२ को मेरी कविता “कल तक मैं एक भिखारी था” के लिए बाल्कान- जी वारी इंटरनेश्नल संस्था नई दिल्ली द्वारा चयनित कर लिया गया व दिल्ली बुलाकर मुझे राष्ट्रिय राजीव गाँधी युवा कवि पुरस्कार से सम्मानित किया गया. ये मेरे लिए किसी चमत्कार से कम न था. इन यादगार पलों ने पूरी तरह मुझे हिंदी के लिए समर्पित कर दिया. उस समय वहां से इंटर की परीक्षा देकर मैं अपने घर बबीना केंट , झाँसी आ गया था. घर आने के बाद परम आदरणीय गुरु जी से मैं आज तक नहीं मिल सका. मैं “अंकुर” के नाम से लिखता हूँ. ये नाम मेरे गुरु जी ने ही विद्यालय छोड़ते समय मुझे एक कविता के रूप में लिखकर दिया था. जो प्रस्तुत है.-
तुम नवांकुर से, सुद्रण तरु का, ग्रहण संकल्प लेकर, पथ सृजित अपना करो, आगे बड़ो, द्रनता लिए, संबल बनो तुम आत्म के, उन्नति शिखर की ओर – एकाकी चलो, निर्माण अपना मार्ग, अपने आप हो. धैर्य की पूंजी , न कष्टों में कहीं तुम खर्च करना, ज़िन्दगी से जूझना, लाचारिओं को तुम हराना. तुम सदा मकशद लिए आगे बड़ो. डगमगाएं पैर तो- बैशाखिओं का लो सहारा, जो की हिम्मत और द्रनता से बनी हो. ज्वर उठता सिन्धु में तरनी उछलती और गिरती, किन्तु नाविक जूझता हारे बिना पाता किनारा. शक्ति और विवेक बल पर. तुम मनुज हो, जानते हो- हर ख़ुशी क्रय की नहीं जाती कभी भी, शक्ति से उस पर विजय पाते मनुज द्रण. का पुरुष तो- सहज- सरल- सुबोध पथ के पक्षधर बन, कूप-कच्छप बन उसी को विश्व सारा मानते है. किन्तु- वीरों के लिए , संघर्ष का पथ सहज पथ है. मुश्किलें, आनंद का पर्याय बनती. इसलिए तुम मान लो यह, ज़िन्दगी संघर्ष का पर्याय है, म्रत्यु भी हमको न सकती मार यदि, पास में संघर्ष मात्र उपाय है.
गुरु जी की इस कविता ने मेरे जीवन मैं एक प्रेरणा का संचार किया जिससे मेरा जीवन पूरी तरह से बदल गया. अब मेरा मर्ग्धार्शन करने के लिए मेरे गुरु जी तो मेरे पास नहीं है किन्तु उनके द्वारा जी हुई प्रेरणा स्वरुप उनकी ये कविता मेरे पास है जो मुझे सहस प्रदान करती है. उनके द्वारा रचित इस कविता के एक एक शब्द को सार्थक रूप जरुर प्रदान करूँगा क्यूंकि अब जे. जे ने मेरे गुरु की कमी को पूरा कर दिया है. जे. जे. पर मुझे हर विधा में पारंगत सेंकडों गुरु व हजारों सहपाठी मिल गए है. जो मेरे लेखन की तुर्टिया समय समय पर बताकर मेरी लेखिनी का मार्ग प्रशस्त कर रहे है. मेरे लिए व मुझ जैसे लोगों के लिए जे. जे. विचारों के आदान प्रदान की एक येसी पाठशाला है, जिसमे किसी भी रचनाकार की कलम भटक नहीं सकती. इस पाठशाला में प्रवेश लिए मुझे ज्यादा दिन नहीं हुए है. ३१ मार्च २०१२ को मैंने अपनी पहली कविता “भूख” पोस्ट की थी. इसके बाद “कल तक मैं एक भिखारी था”. “देह बेचकर पेट पालती बालाएं” , “मैं लिखूं गीत”. “नेताओं की नाक में नकेल होना चाहिए”. व “फकीरी धर्म लायेगा धरा पर स्वर्ग सुन्दर”. प्रारंभ में मुझे पाठशाला में मौजूद सह्पथिओन व गुरुजनों की कम प्रतिक्रियां मिली तो मन में खिन्नता महसूस हुई. क्यूंकि उस वक़्त तक मेरे परिचय ठीक से हो नहीं पाया था. किन्तु अब धीरे धीरे मेरा परिचय सहपाठियों से होने लगा है. और मुझे भी समर्थन मिलने लगा है. जिससे मुझे सुखद अनुभूति हो रही है. जे. जे. पर मैं अपने विचारों को उन्मुक्त रूप से व्यक्त कर पा रहा हूँ. जे.जे. के सामने अब मुझे अन्य मंच फीके लगने लगे है. कुछ लोग लेखन को धन अर्जन का माध्यम मानते है व धन अर्जन के लिए ही लिखते है. किन्तु मेरी विचारधारा उन लोगों से बिलकुल भिन्न है. मैं लेखन को समाज सुधर का माध्यम बनाना चाहता हूँ. मेरी सोच है कि मेरी कविताओं से समाज में जाग्रति पैदा हो. मेरी एक कविता से यदि एक व्यक्ति जागता है तो यही मेरे लिए मेरा पारिश्रमिक है. मेरे लेखन के लिए मेरे गुरु जी मेरे लिए प्रथम गुरु थे. और शायद जे.जे. मेरी ज़िन्दगी में दुसरे गुरु के रूप में आया है. प्रतिदिन दैनिक जागरण समाचार पत्र में जागरण जंक्शन वाले कालम में जे. जे. के दो ब्लोगरों के लेख व कवितायेँ प्रकाशित होती है. इससे रचनाकारों के विचार जन-जन तक पहुँचते है. जे. जे. पर मैं भी इशी उम्मीद के साथ कायम हूँ कि एक दिन मेरा ब्लॉग भी प्रकाशित होगा. इस दिन मैं समझूंगा कि जे. जे. कि पाठशाला में मैंने भी अपनी परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है. इस परीक्षा को मैं अपने सहपाठियों व गुरु जे. जे. कि मदद के बिना उत्तीर्ण नहीं कर सकता, इसलिए सभी से आशा करता हूँ कि वे समय समय पर मुझे मार्गदर्शन देते रहे ताकि जे. जे. का ये प्रतिस्पर्धा से भरा सफ़र मैं आसानी से पूरा कर सकूँ.
चिंतन- दर्शन- साहित्यिक भंडार है जे.जे. ज्ञान- वुधिता- विवेक युक्त अम्बार है जे.जे. उन्मुक्त लेखन- विचारों कि पैनी धार है जे.जे. निशाचरों से लड़ने का हथियार है जे.जे. सरस्वती संतानों को वरदान है जे.जे. बूड़े भारत का फिर से निर्माण है जे. जे.
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