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छा गयी कैसी उदासी,
छा गया कैसा सितम/
पैर फैलाये तो चादर,
पैर में मेरे था कम//
भा गया संसार में,
मुझको खिलौना/
भर गयी तृष्णा,
ये कैसी वेदना है//
.
चाहा था बचना,
पर न बच सका/
हो गया मोहताज मैं,
हालात का//
मर गयी सारी पिपासा,
मर गया मेरा अहम्/
स्वाहा हो गयी है साधना//
मर गयी करुणा,
और छा गया मातम//
.
ज़िन्दगी न जी सका आराम से,
अब तलक कुछ न मिला,
मुझको खुदा से राम से//
छोड़कर सारे झमेले,
आ गया बीहड़ में मैं/
खून करके भावना का,
मौत से शर्मा गया//
.
है नहीं यह दोष मेरा,
दोष यह रोटी का है/
ज्ञान पथ को छोड़कर,
अज्ञान से टकरा गया//
.
अध्यात्म की धारा,
बहाना चाहता था/
प्रेम को पथ में,
बिछाना चाहता था//
भूख से जब हो गया बेहाल,
प्रेम को सूली चदाकर,
अमन को देकर चिता,
आज फिर मै-
एक धोखा खा गया//
.
तितलियाँ- भँवरे- कली,
ये कल्पना थी/
सूर्य-चन्द्र- तारे,
ये मेरी कुछ अल्पना थी//
प्रेम था मेरा खिलौना,
ज्ञान था मेरा बिछौना/
आज सबको छोड़कर,
मोह-पथ पर आ गया/
.
रख चूका हूँ शिल ह्रदय पर,
पी लिया मैंने जहर,
चंद सांसें ही बची है,
ढा रहा है वक़्त कहर//
रोटियां ही दिख रही है,
अब मुझे चारों तरफ/
रोटिओं की सेज पर,
यमराज मेरी आ गया/
.
और एक फनकार भी,
कर्तव्य विमुख सा हो गया/
परिवर्तन है प्रकृति का नियम,
साकार सम्मुख हो गया.
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