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रोटी………

कड़वा सच ......
कड़वा सच ......
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छा गयी कैसी उदासी,

छा गया कैसा सितम/

पैर फैलाये तो चादर,

पैर में मेरे था कम//

भा गया संसार में,

मुझको खिलौना/

भर गयी तृष्णा,

ये कैसी वेदना है//

.

चाहा था बचना,

पर न बच सका/

हो गया मोहताज मैं,

हालात का//

मर गयी सारी पिपासा,

मर गया मेरा अहम्/

स्वाहा हो गयी है साधना//

मर गयी करुणा,

और छा गया मातम//

.

ज़िन्दगी न जी सका आराम से,

अब तलक कुछ न मिला,

मुझको खुदा से राम से//

छोड़कर सारे झमेले,

आ गया बीहड़ में मैं/

खून करके भावना का,

मौत से शर्मा गया//

.

है नहीं यह दोष मेरा,

दोष यह रोटी का है/

ज्ञान पथ को छोड़कर,

अज्ञान से टकरा गया//

.

अध्यात्म की धारा,

बहाना चाहता था/

प्रेम को पथ में,

बिछाना चाहता था//

भूख से जब हो गया बेहाल,

प्रेम को सूली चदाकर,

अमन को देकर चिता,

आज फिर मै-

एक धोखा खा गया//

.

तितलियाँ- भँवरे- कली,

ये कल्पना थी/

सूर्य-चन्द्र- तारे,

ये मेरी कुछ अल्पना थी//

प्रेम था मेरा खिलौना,

ज्ञान था मेरा बिछौना/

आज सबको छोड़कर,

मोह-पथ पर आ गया/

.

रख चूका हूँ शिल ह्रदय पर,

पी लिया मैंने जहर,

चंद  सांसें ही बची है,

ढा रहा है वक़्त कहर//

रोटियां  ही दिख रही है,

अब मुझे चारों तरफ/

रोटिओं  की सेज पर,

यमराज मेरी आ गया/

.

और एक फनकार भी,

कर्तव्य विमुख सा हो गया/

परिवर्तन है प्रकृति का नियम,

साकार सम्मुख हो गया.

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